आज पूरे भारत मे मायावती एकलौती मजबूत दलित नेता है परंतु आज बो दलितों के हित पर ध्यान नही देती हैं सिर्फ अपने निजी स्वार्थ पूरे करने की जादा सोचती है.
माया की अच्छाई
1- माया ही पूरे देश मे एकलौती सच्ची सेक़ुलर नेता है जो उपद्रव करने पर मुल्लों को भी पीटती है और हिन्दू अतिवादिओं को भी.
2-मायावती पीयेम बनाने की जल्दी बाजी मे नही है
3- उनके राज्य मे गुंडा गार्दी और दंगे नगण्य रहते है
4-कर्म चारी अपना काम समय से करते हैं
5-जनता के लिए अपने कामों को करबाने के लिए जाड़ा परेसान नही होना पड़ता है
6-उनके राज्य मे पक्छ पात नही होता है.
माया का सकारात्मक मंत्र : सार्वजन हिताय सार्वजन सुखाय सबसे महत्वपूर्ण है
माया की बुराइँया
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माया को यह नही भूलना चाहिए की बसपा का मसद दलित विकास था जिससे बो भटक रही है परंतु आज माया उल्टा कर रही है सार्वजन हिताय सार्वजन सुखाय की योजना सही है पर इसके दुआरा दलितों को किनारे कर मुस्लिमों को प्राथमिकता दी गई है जो की उचित नही है
1-दलितों के हिट को किनारे कर मुस्लिमों को प्राथमिकता दी जा रही है जो की सारा सर गलत है
आ) दलित प्रताडित और सोषित है मुस्लिम कोई सोषित नही हैं
ब) दलितों पर जुल्म हुए है पर मुसलमानो पर कब जुल्म हुए हैं.
सी)दलित कभी शासक नही रहा है परंतु मुस्लिमों ने 400सालों तक राज किया है
द)दलित ने कभी देश के टुकड़े नही करवाय है परंतु मुस्लिम देश के दो टुकड़े करवा कर ले चुके हैं.
ए) आज मुस्लिम हर छेत्र मे हैं आक्टेर, नेता, मीडिया, और बिज़नेस मेन परंतु दलित आज भी दलित है
फ)दलित अपनी हालत के लिए खुद जिम्मेदार नही है परंतु मुस्लिम अपनी दायनीए हालत के लिए स्वता जिम्मेदार है
ग) मुस्लिमों के हित के लिए सोचने बाले 57 मुस्लिम देश, अग्रणी मुस्लिम, मुल्ला माल्वी और कुछ और लोग (मीडिया और छदम सेक़ुलर )भी है परंतु दलित के बारे मे सोचने बाली सिर्फ भारतीये सम्भिधान है जिसे बाबा सहव ने लिखा है और हमारा मीडिया है जो बाबा साहव के वारे मे भी नही बोलता है माया जी आप जैसे नेता उसका अनुपालन भी नही करबा रहे है.
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ह) आज के समय मे स्वर्ण. भले मिल सकता है परन्तु मुस्लिम दलित को भी हिन्दू विरोध की नज़रों से देखता है इसका करण स्वर्ण अपने दिमाग से खुद सोचता है परन्तु मुस्लिम कभी अपने दिमाग से नही सोचता है उसके पास दिमाग तो होता है परंतु सोचता वो मुल्लों के दिमाग से ही है.
ई) अगर कंही हिन्दू मुस्लिम दंगा होता है तो स्वर्ण हिन्दू की जगह दलित हिन्दू जादा सिकार होता है कोई मुस्लिम दलितों पर रहम नही करता है
ज) वो इंसान दलितों से कितना प्रेम कर सकता है जो जो किसी दलित के गम मे शरीक नही होता है
मेडम जी स्वर्ण हमारे अपने हैं अगर मारेंगे भी तब छाया मे ही डालेंगे परंतु मुस्लिमो का क्या भरोसा है
2-दलितों के अरकछन को मुस्लिम को दिया गया है जो की गलत है मुस्लिमों के लिए अरकछन किसी भी हालत मे मंजूर नही अगर मुस्लिम अरकछन चाहते हैं तो पाकिस्तान मे हिन्दुओं को अरकछन दिलबायें तब बात करें
Note: हम किसी भी प्रकार से मुसलिनो के लिए अरकछन के हक मे नही जिसके उपरोक्त करण है पर इसका मतलव एह नही है की हम मुस्लिम विरोधी है हम कहते है की उनेह जादा से जादा मदत का प्राव धान हो पर इतना भी नही की वोट बैंक के लिए आंखे बंद कर कर सबकुछ उनेह ही देदो और दलितों के हितो को दरकिनार कर दो
3- आज यू पी के बाहर कंही भी माया के नेता नही है जिसकेकरण दलितों को अपने काम करबाने मे बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है माया ने कोई ऐसी योजना नही की, कि यू पी के बाहर के दलित भाई आसानी से अपनी बात रख सकें या अपने काम करबा सकें
4-आज के समय मे हर पार्टी अपने नये नेत्रत्व को आगे कर रही है परंतु माया ने अभी तक ऐसा कोई कदम नही उठाया है
5-नोटों का प्रदर्शन करना दलितों का अपमान करने के बराबर है.
6-जब आप सीयेम बनकर जातिवाद और भेदभाव पर रोक नही लगा सकी तो पीयेम बनकर क्या कर लोगी.
7-पीयेम बनाने से सभी दलितों की स्थिति नही सुधार सकती है अगर सुधार सकती है तो अम्बेडकर के सिधांत से ( सिकसित बनो, संघटित बनो, संघर्स करो) परंतु माया जी इस सिधांत पर नही चल रही हैं.
8-देश मे जो लोग बौध ध्रम को मानते है जादातर लोग उनीह को अम्बेडकरवादी समझते हैं जबकि ऐसा नही है कुछ और लोग भी हैं जो अम्बेडकरवादी हैं.
9-हम किसी मजहव की बुराई नही करते है, हिन्दू धर्म से निकले जितने भी सम्प्रदाय (जैन, बौध, सीख, आर्या समाज) है उनका सिर्फ एक ही मकसद था हिन्दू धर्म की बुराइओं को निकाल कर उसे स्वच करना परंतु कोई भी पूर्ण रूप से सफल नही हो सका है हन अन्सिक रूप से जरूर सफल हुए है, में स्वम् सभी धर्मों मे विस्वास करता हून और अपने को एक बौध बी समझता हून परंतु में किसी चीज पर अंध विस्वास नही करता हूँ मेरी नज़र मे जातीबाद को तोड़ने के लिए बौध धर्म ने प्रयास किया परन्तु बो असफल रहा है और आज हम अगर बौध धर्म को आगे बड़ा कर जातिवाद को तोड़ने की कोशिस करें तो सायद वो सफल होना मुस्किल होगा.
10- बाबा सहव ने पूरी जिंदगी हिन्दू ध्रम से इस जातिवाद को मिटाने की कोसिस की किओंकी वो जानते थे की जातिवाद और भेदभाव ना सिर्फ इंसानियत के खिलाफ है बल्कि देसके लिए भी घातक है, परंतु उस समय के स्वर्ण समाज ने उनका साथ नही दिया और सायद उस समय परिस्थितियाँ भी पूर्ण रूप से अनूकूल नही थी जिसके करण वो हिन्दू धर्म की इस बुराई को पूर्ण रूप से खतम नही कर पाये जिसकी पीड़ा से वो आहत थे और इसी पीड़ा के करण उन्होने अपने जीवन के अंतिम समय मे बौध धर्म ग्रहण् किया परंतु वो निराशावादी नही थे उन्होने अपना सिधांत दिया और सोचा था की अगर दलित समाज इस पर चलेगा तो एक दिन सफल हो जायेगा वास्तव मे बाबा साहव बहुत बड़े दूर दर्शी थे.
11- आज जादातर बसपा बाले और अम्बेडकर समर्थक येह कहते हैं की बुद्ध धर्म के दुआरा ही संघटित हुआ जा सकता है परन्तु येह भी संभव. नही. है अगर होता तो बुध धर्म अपने पैदा होने की जगह अल्प नही होता बैसे हर हिन्दू बुध है किओंकी हिन्दुस्तान के हर इंसान के दिल मे बुध हैं.
12- कुछ लोग हैं जो कहते है बाबा सहव ने अंत समय मे बुध धरम अपनाया था इसलिए सभी को बुध धर्म अपनाना चाहिए परन्तु मेरा मानना अलग है की बाबा जी हिन्दुत्व से जातिवाद ना मिटने के करण दुखी ज़रूर थे परंतु वो निरसवादी नही थे और लोग अपनो से ही नाराज़ होते है गैरों से कोई नाराज़ नही होता है अगर बाबा सहव निराससावादी होते तो कहते की
सभी दलित हिन्दू धर्म छोड़ दें परंतु उन्होने ऐसा नही कहा उनेहोने कहा की जो स्वचा से जो करना चाहे कर सकता है बाबा सहव दुअरा बुध धर्म स्वीकार करना कोई घातक कदम नही था अगर वो निराशावादी होते तो हिन्दुत्व के लिए घातक होता
बाबा जी एक और बात जानते थे की एक साथ पूरा समाज कभी धर्म परिवर्तन नही का सकता है किओंकी ऐसा करने के लिए मानसिक स्वीक्रति भी आबश्यक् है जो कि एकदम नही हो सकता है सब सिक्षित और विकसित नही है ताकि अपने अच्छे और बुरे के बारे में फैसला कर सकें
निराशावादी वो होता है जो पूर्ण रूप से समझ लेता है की अब सुधार के सारे रास्ते बंद हैं और सुधार होना असंभव है इस अवस्था मे दो रास्ते होते है
आ) उसी स्थिति से समजौता कर ले और अपने को अड्जस्ट करले
ब) उस जगह को ही छोड़ दे और दूसरों को भी ऐसा करने को कहें
बाबा जी निरासवादी नही थे उन्होने दुखी होकर बुध धर्म ग्रांण किया अन्य पर ऐसा करने को ज़ोर नही दिया है अगर बो निराशावादी होते तो कहते सिकसित बनो संगठित बनो और बुध धर्म ग्रहण् करलो परन्तु उन्होने इसके उलट कहा की संघर्ष करो उनेह उस दुख के समय मे भी ड्रन आसा थी की एक ना एक दिन जातिवाद खतम होगा
बाबा साहब जानते थे की अगर 4 भाई है और वो किसी एक ही प्रकार की समस्या से ग्रशित हैं उनमे अगर कोई एक बुद्धिमान है अब अगर वो इस समस्या से बचने के लिए अपने ही भाईओं को छोड़ कर चला जाये तो क्या होगा उसकी समस्या तो समाप्त हो जायेगी परंतु उसके वो 3 भाई उसी पीड़ा को सहते रहेंगे जो की गलत है और एक साथ जा नही सकते है किओंकी सबकी बुद्धि समान विकसित और सम्रध नही हो सकती है अच्छे बुरे का फैसला करने को और ज़वर जस्टी अपना फैसला उन पर थोपना इंसानियत के खिलाफ है और बैसे भी किसी समस्या से भागना कोई उपाय नही है सामना करना ही समाधान है. इसीलिए बाबा जी ने कहा है की संघर्ष करो
14- माया जी सिर्फ नारे बदलने और राजनीतिक लाभ के लिए सिर्फ एकाध मिलन सभा करने से कुछ नही होगा पूरे समाज को एक करने के लिए कोई ठोस योजना नही बनाई है
15- दलितों पर अत्याचार ना हो भेदभाव ना हो उसके लिए कोई कानून नही बनाया है एक हरिज़न एक्ट था उसे भी कमजोर कर दिया गया है उसमे सुधार की ज़रूरत थी आपने तो उसे उदासीन ही बना दिया , जातिवाद को मिटाने की कोई योजना नही है.
16- दलितों को मुख्य धारा मे लाने हेतु कोई ठोस योजना नही है फिर आपसे कैसे उम्मीद की जाये की आप दलित नेता है
अब आप ही निश्चय करें की मायावती कितनी दलित हितैषी है ?