मंगलवार, 9 अगस्त 2016

कुर्बानी (जीवहत्या) एवम् मासाहार अमानवीए

कुर्बानी (जीवहत्या) एवम् मासाहार अमानवीए

आज हम बात करते हैं कुर्बानी एवम् मासाहार की जो की सिर्फ और सिर्फ अनुचित है परन्तु भोजन के अधिकार और मझवी अधिकार के नाम पर सही बताने की पुर जोर कोसिस हो रहीं है इरफान ख़ान ने एक सबाल क्या कर दिया पूरी सेक़ुलर मीडिया और मुस्लिम जगत के लोगों मे आग लग गई की किसी ने ऐसा कह कैसे दिया गाँधी और गौतम के देश मे अब अहिंसा की बात करना और जीवहत्या को गलत कहना पाप कब से हो गया मेरी समझ से परे है कुछ अल्प बुद्धि के एँकर मूर्खों को लेकर टीवी पर वेतुकी बहेश करते है जिनमे ना तो वहेस करने बाले ,ना ही करबाने बाले कुछ जानते है और एक दूसरे को दोष देते रहते हैं/ कुछ समय पहले एक शाकाहारी एवम् मासाहारी के बीच बहेस होते देखी जिसमे दोनो लोग जो बाते कह रहे थे वो बड़ी ही मूर्खता पूर्ण थी और शाकाहारी स्पस्ट रूप से मासाहार को गलत सावित नही कर पा रहा था  आज हम कुछ ऐसे ही सबालों के उत्तर खोजते है जिन पर जाकर एक शाकाहारी निरुत्तर होता है
1- प्राचीन मे स्भी के पूर्वज मास खाते थे ?
2-हिन्दू धर्म ग्रंथो मे मासाहार का उल्लेख मिलता है ?
3-हिन्दुओ मे बलि प्रथा है जो जीवहत्या को वडावा देती है ?
4-वन्य पुरुष (आदिवासी) आज भी जानवरों को मार कर खाते है और उनको रोकना मुस्किल है ?
5-स्वास्थ की नजर से मांस खाना उचित है साइंस के आधार पर ?
6-पेंड पौधों मे भी आत्मा होती है अगर हम पौधों का भोजन करते हैं तब भी हत्या का पाप लगेगा ?
7- अगर जीव हत्या पाप है तो फिर सेना और पुलिस के लिय हत्या करना पाप किओन नही है ?
8-मासहारी जीव मास क्यू खाते है ?
में जानता हून यह 8 वो सबाल हैं जंहा पर कोई भी अहिंसक मानव निरुत्तर होने लगता है परंतु सिर्फ अग्यान्ता के कारण जबकि इन सबालों के उत्तर बड़े ही सीधे और सरल है
 समीक्षा 1 -  प्राचीन काल मे सभी जानते है की मानव बनो मे रहता था रहन-सहन , ख़ान-पान के ना तो पर्याप्त शाधन थे ना ही इतना उन्नत ग्यान था ऐसी अवस्था मे अपने आप का पालन पोषण करना कितना कठिन था इसका अंदाज़ा आज का इंसान नही लगा सकता है समय के हिसाव से उनका मांस खाना कोई पाप कार्य नही था आज भी ऐसी जगह पर रहने बाले लोग इस तरह के भोजन का प्रयोग  करते है जो की अनुचित नही है हन अगर इंसान  पर्याप्त साधन होने के बाद भी मास खाना नही छोड़ता है तो वो पाप का भोगी होता है/.
समीक्षा 2- चूंकि हिन्दू कोई मानव चलित धर्म ना होकर प्राचीन सनातनी धर्म है तो सॉफ है की प्राचीन मानव मासाहारी थे और उन्ही मे से कुछ ने धार्मिक ग्रंथ भी लिखे हो ,तो ज़ाहिर सी बात है मांस का उल्लेख मिलता होगा परंतु समय और विकास के साथ साथ बुद्धि और विवेक के आधार पर वो मासाहार से शाकाहार की तरफ बड़ने लगा और मासाहार का त्याग कर दिया, और युग चाहे कोई हो पर किताबें 4 प्रकार की ही लिखी जाती है (1)- धार्मिक-आध्यात्मिक .(2) सामाजिक-इतिहासिक,(3) राजनीतिक (4)आर्थिक , धार्मिक पुस्तकों को छोड़ कर तीनो प्रकार की पुस्तको मे हमेशा परिवर्तन होता रहता है बहुत जल्दी जल्दी परंतु सिर्फ धार्मिक ग्रंथो मे ही दीर्घ कालिक परिवर्तन होता है इसलिये जो भी ग्रंथ इस बात की पुस्ती करते है वो धार्मिक ग्रंथ ना होकर अन्य प्रकार के हैं और किसी धार्मिक ग्रंथ मे उल्लेख मिलता है तो ज़रूर उसका कोई महेत्व होगा और अगर बिना किसी महेत्व के उल्लेख है तो कुछ समय उपरान्त उसमे परिवर्तन ज़रूर हुआ होगा एह प्रक्रति का नियम है .
समीक्षा 3-  जैसा की हम उपरोक्त समिकक्षा मे बता चुके है की समय के अनुकूल परिवर्तन होते रहते है प्राचीन और सनातनी होने के कारण बहुत से अंधविसबास और अवगुण इस धर्म के अंदर आये परन्तु महापुरसों की अनुकंपा और मेहनत के कारण उनका विरोध भी हुआ और उन पर रोक लगी जिसके कारण आज हिन्दू धर्म 99% तक बलि प्रथा से रहित है और इस प्रथा मे प्रतीकात्मक बलि प्रथा देने का चलन है जैसे कुमेहड़ा, नीबू, मिर्च अगर फिर भी कंही 1% अंध विस्वास रह गया है तो महापुर्षों के प्रयास से समाप्त हो जायेगा , हमे गर्व है की हमारे धर्म मे परिवर्तन के लिए उचित सम्मान और जगह है /
समीक्षा 4- आज अगर वनीय प्रांतो मे लोग मासाहार को मजबूर है तो एह धर्म प्रचारको एवं सरकारों की नाकामी है किओंकी ना तो धार्मिक लोग पूर्ण रूप से उनमे आध्यात्म उत्पन्न कर पा रहे है और ना ही सरकारें पूर्ण,पॉस्टिक,पर्याप्त भोजन की वियवस्था  कर पा रही है यह कोई धर्म ki कमी नही है :
समीक्षा 5- एह बात पूर्ण रूप से बकवास है शाकाहार भी उस कमी की पूर्ति कर सकता है ऐसे बहुत से आहार है और आव तो साइंस भी कहता है की मासाहार से पर्यावर्ण पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है जिसके कारण चीन जैसा मासाहारी देश भी मांसाहार मे 40% की कटौती कर रहा है गूगल पर सर्च कर सकते है /

समीक्षा 6- वेशक पेड़ पौधों मे आत्मा होती है परंतु तो उन्हे लाभ हानि का आभास  नही  होता है अब हम बात करते है पेड़ पौधो को खाने से पाप किओन नही लगता है इसके लिए कुछ बातों को समझना होगा

(1)- पेड़ पौधे अपना भोजन स्वम् बना लेते है पर मानव नही/
(2)-पेड़- पौधे से जो भोजन ग्रहण करता है वो 4 प्रकार का होता है जैसे मूल (जड), कन्द्द (तना), फल, पत्ते ,
(3)-अधिकतर पेड़ों का फल खाते है जो की वनस्पति  सूर्यकी रोशनी एवम्  पंच तत्वो को ग्रहण करके अन्य उपभोक्ता हेतु बनाते है अर्थात जीवात्मा पेड़-पौधों मे होती है उनके दुआरा बनाय गये भोजन मे नही होती इसलिए उनके भोजन को अपने भोजन के रूप मे प्रयोग करना कोई पाप नही है, जॉब कोई पौधा अपना भोजन पूर्ण रूप से बना चुका होता है तभी वो म्रत अवस्था में जा चुका होता है अर्थात मर चुका होता है जैसे दाल का पौधा दाल पकने पर मर चुका होता है , आलू  एक ज़ड़ रूपी भोजन होता है जव आलू पूर्ण रूप मे आता है उसका पौधा मर चुका होता है ,मूली, गाजर, लहसुन, प्याज, आदि , इसके बाद बात करते हैं गन्ना जिसका हम तना प्रयोग करते है गन्ना जव पूर्ण रूप मे आता है उसकी पत्ते समाप्त हो चुके होते है अर्थात वो मर चुका होता है /
(4)-अब बात करते हैं कुछ ऐसे पौधो की जिनको मरने से पहले प्रयोग करते है जैसे की पालक या अन्य कोई साक जिसका हम सिर्फ पाते काट कर खाते है पर असलियत यह है ऐसे पौधों के प्राण सिर्फ जड तक ही सीमित होते हैं इस बात का प्रमाण एह होता है की किसी भी जीवित प्राणी का अगर कोई अंग काट दिया जाये तो दुबारा वो पूरा नही किया जेया सकता है थोड़ा बहुत सुधार ही किया जा सकता है जैसे किसी जीव का हाथ कटने पर उसे ठीक तो किया जा सकता है पर उसे दुवारा से उगाया नही जा सकता है पर आप ध्यान दे तो पता चलता है हम जिन पौधों के पत्ते खाते हैं उनके पत्ते कुछ समय बात पुना उसी अवस्था मे आ जाते है जैसे , पालक, वर्सीन आदि- आदि/
अब कुछ लोग इस बात को कह सकते है की अगर तना रूपी गन्ने मे प्राण नही तो वो पुनः ज़मीन में डालने पर जमने कैसे लगता है तो हर पेड़-पौधा अपने फल के साथ 2 अपने बीज़ का भी उत्पादन करता है और तना रूपी गन्ने की ज़ो गाँठ होती है वो ही बीज होती इस बात को स्पस्ट करता हून कुछ लोग गन्ने की जगह उसकी सिर्फ गाँठ को ही बीज के रूप मे प्रयोग करते है इस उपरोक्त विवरण से पता चलता है पेड़- पौधों को खाने से जीव हत्या नही होती है और अगर फिर भी कोई प्याज और आलू को बकरा या गाय के समान समझता है तो मनुष्य भी प्याज की तरह हुए और ऐसे लोग अगर इंसान को काटकर खाते है तो उनकी नज़र मे कोई पाप नही होगा /
समीक्षा 7- भगबान बुध के अनुसार सिर्फ अकारण और अनुचित कारण के लिए की गई हत्या पाप होती है किसी आबश्यक उचित कारण के लिय की गई हत्या पाप का कारण नही होती है ,
कारण (1) - अगर कोई आपको मारने लगे तो आत्मरक्षा हेतु उसकी हत्या की जा सकती है और यह हत्या ना होकर बद्ध होती है /
कारण (2) अपने सत्य समाज, अधिकारिय ज़मीन, परिवार, मानव-अनय प्राणी, देश, सच्चे धर्म के संरक्षण के लिए , साम-दाम,दंड,भेद के बाद पांचवा और अंतिम उपाय धर्म युद्ध है और इसमे किसी के प्राण का हरण कोई पाप नही.
कारण (3)-अगर कोई विपरीत प्ृस्थिति मे फस जाये जंहा पर वो भोजन ना बना सकता हो , ना उगा सकता हो, ना कंही से ला सकता हो तो जीवित रहने हेतु मास का सेवन कर सकता है इस अवस्था मे की गई हत्या पाप नही ज़रूरत होती जिसका इतना पाप नही लगता जिससे आपके पुण्य नष्ट हो जाये परंतु इस हत्या का भी कुछ ना कुछ मूल चुकाना होता है , अगर कोई किशान फसल उगाने हेतु अपने फावड़े से कुछ जीवाणु, विषाणु,कीटाणु, की हत्या कर देता है तो वो पाप नही होता है परंतु वो किसी ऐसे प्राणी को मारता है जो शान्ति प्रिय हो किसी प्रकार का नुकसान ना करता हो तो उसकी हत्या का पाप अबस्य लगता है /
समीक्षा 8- मासहारी मांस का भोजन क्यू करते है क्या उनको पाप नही लगता है

ऐसे जीव जो मांस खाते हैं उनके दात नुकीले होते है और वो जब भी पानी पीते है जीव से उछाल कर पीते है तो कुछ ऐसे भी जो मरे हुए जीब को भी खाते है जैसे गिद्ध ,और कुछ  मारकर भी खाते है जैसे कुत्ता,, कुछ सिर्फ साक या फल खाते है  यह वो प्राणी है जो ना तो अपना भोजन स्वम् बना सकते है और ना ही पौधो दुआरा बनाये गये भोजन को खा सकते है अब ऐसी अवस्था मे वो माज़ नही खायेगा तो और क्या करे उसके पास ना इतना दिमाग ना ही कोई साधन है ना उसका शरीर ऐसा है जी भोजन उगा सके तो वो क्या करेगा दिमाग होने के बाबज़ूद मानव विपरीत अवस्था मे मांस का सेवन कर सकता है फिर वो जीव है और असमर्थ है दूसरी बात यह है की वनस्पति उत्पादक होती है और जो वनस्पति के बनाय भोजन को  को खाता है उसे  प्रथम उपभोक्ता कहते है और जो उस जीव को खाये उसे दुतीया उपभोक्ता कहते है और जो दूसरे उपभोक्ता को खाता है उसे सर्वोच या तीसरा उपभोक्ता कहते है एह प्राक्रतिक नियम है पर्यावर्ण का संतुलन बनाने के लिए एह चक्र ब्ना रहता है हम और आप फेर बदल नही कर सकते है मानव मात्र के लिए इतना है की उसे दिमाग के उपयोग करने की पूर्ण क्षमता  k आधार पर जीव और जंतुओं से अलग इंसान की उपाधी दी गई है अगर दिमाग होने बाद भी हम अकारण जीव हत्या करके उसका मास खाते है तो उस शेर रूपी जानवर और हम मे क्या अंतर रह जायेगा .मानव का धर्म है की वो अकारण उस चीज को नॅस्ट ना जिसको वो उत्पन्न नही कर सकता है
निष्कर्ष : अंत मे हम सिर्फ इतना ही कहेंगे की किसी कुप्रथा के कारन ,किसी बेज़ुबान की कुबानी देना पाप तो है ही अधर्म भी है अर्थात कुर्वानी और मासाहार अमानवीय कुकर्म है इसे त्यागने की अगर कोई बात करता है तो वो गलत कैसे हो गया ?